Mahesh Mishra

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Tuesday, June 9, 2020

लकड़ी  का  कटोरा

एक  वृद्ध  व्यक्ति अपने  बहु बेटे  के  यहाँ  शहर  रहने  गया . उम्र  के  इस  पड़ाव  पर   वह  अत्यंत  कमजोर  हो  चुका  था , उसके  हाथ  कांपते  थे  और  दिखाई  भी  कम   देता  था .  वो एक छोटे से घर में रहते थे , पूरा  परिवार  और  उसका  चार  वर्षीया  पोता  एक  साथ  डिनर  टेबल  पर  खाना  खाते  थे . लेकिन  वृद्ध  होने  के  कारण  उस  व्यक्ति  को खाने  में  बड़ी  दिक्कत  होती  थी . कभी  मटर  के  दाने  उसकी  चम्मच  से  निकल  कर  फर्श  पे  बिखर  जाते  तो  कभी  हाँथ  से  दूध  छलक   कर  मेजपोश   पर  गिर  जाता  .

बहु -बेटे   एक -दो   दिन   ये   सब   सहन   करते   रहे   पर   अब   उन्हें  अपने  पिता  की  इस   काम  से  चिढ  होने  लगी . हमें  इनका  कुछ  करना  पड़ेगा ”, लड़के  ने  कहा . बहु  ने  भी  हाँ  में  हाँ  मिलाई  और  बोली ,” आखिर  कब तक  हम  इनकी  वजह  से  अपने  खाने  का  मजा किरकिरा रहेंगे , और  हम  इस  तरह  चीजों  का  नुक्सान  होते  हुए  भी  नहीं  देख  सकते .

अगले दिन जब  खाने  का  वक़्त  हुआ  तो  बेटे  ने  एक  पुरानी  मेज  को  कमरे  के  कोने  में  लगा  दिया  , अब बूढ़े पिता  को  वहीँ  अकेले  बैठ  कर  अपना  भोजन  करना  था .  यहाँ  तक की  उनके  खाने  के  बर्तनों   की  जगह  एक  लकड़ी  का  कटोरा  दे  दिया  गया  था  , ताकि  अब  और  बर्तन  ना  टूट -फूट  सकें . बाकी  लोग  पहले की तरह ही आराम   से   बैठ  कर  खाते  और  जब  कभी -कभार  उस  बुजुर्ग  की  तरफ   देखते  तो  उनकी  आँखों  में  आंसू  दिखाई  देते  . यह देखकर भी बहु-बेटे का मन नहीं पिघलता ,वो  उनकी  छोटी  से  छोटी  गलती  पर  ढेरों  बातें  सुना  देते .  वहां  बैठा  बालक  भी  यह  सब  बड़े  ध्यान  से  देखता  रहता , और  अपने  में  मस्त   रहता . 

एक  रात  खाने  से  पहले  , उस  छोटे  बालक  को  उसके  माता -पिता  ने  ज़मीन  पर  बैठ  कर  कुछ  करते  हुए  देखा ,  “तुम  क्या  बना  रहे  हो ?”   पिता ने  पूछा ,

बच्चे  ने  मासूमियत  के  साथ  उत्तर  दिया , “ अरे  मैं  तो  आप  लोगों  के  लिए  एक  लकड़ी  का  कटोरा  बना  रहा  हूँ , ताकि  जब  मैं बड़ा हो  जाऊं  तो  आप  लोग  इसमें  खा  सकें .” ,और  वह  पुनः  अपने  काम  में  लग  गया . पर  इस  बात  का  उसके  माता -पिता  पर  बहुत  गहरा  असर  हुआ  ,उनके  मुंह  से  एक  भी  शब्द  नहीं  निकला  और आँखों  से  आंसू  बहने  लगे . वो  दोनों  बिना  बोले  ही  समझ  चुके  थे  कि  अब  उन्हें  क्या  करना  है . उस  रात  वो  अपने  बूढ़े पिता  को   वापस  डिनर  टेबल  पर  ले  आये , और  फिर  कभी  उनके  साथ  अभद्र  व्यवहार  नहीं  किया .

फूटा घड़ा

बहुत  समय  पहले  की  बात  है  , किसी  गाँव  में  एक   किसान  रहता  था . वह  रोज़   भोर  में  उठकर  दूर  झरनों  से  स्वच्छ  पानी  लेने  जाया   करता  था . इस  काम  के  लिए  वह  अपने  साथ  दो  बड़े  घड़े  ले  जाता  था , जिन्हें  वो  डंडे  में   बाँध  कर  अपने कंधे पर  दोनों  ओर  लटका  लेता  था . 

उनमे  से  एक  घड़ा  कहीं  से  फूटा  हुआ  था  ,और  दूसरा  एक  दम  सही  था . इस  वजह  से  रोज़  घर  पहुँचते -पहुचते  किसान  के  पास  डेढ़  घड़ा   पानी  ही बच  पाता  था .ऐसा  दो  सालों  से  चल  रहा  था . 

सही  घड़े  को  इस  बात  का  घमंड  था  कि  वो  पूरा  का  पूरा  पानी  घर  पहुंचता  है  और  उसके  अन्दर  कोई  कमी  नहीं  है  ,  वहीँ  दूसरी  तरफ  फूटा  घड़ा  इस  बात  से  शर्मिंदा  रहता  था  कि  वो  आधा  पानी  ही  घर  तक  पंहुचा   पाता  है  और  किसान  की  मेहनत  बेकार  चली  जाती  है .   फूटा घड़ा ये  सब  सोच  कर  बहुत  परेशान  रहने  लगा  और  एक  दिन  उससे  रहा  नहीं  गया , उसने  किसान   से  कहा , “ मैं  खुद  पर  शर्मिंदा  हूँ  और  आपसे  क्षमा  मांगना  चाहता  हूँ ?”

क्यों  ? “ , किसान  ने  पूछा  , “ तुम  किस  बात  से  शर्मिंदा  हो ?”

शायद  आप  नहीं  जानते  पर  मैं  एक  जगह  से  फूटा  हुआ  हूँ , और  पिछले  दो  सालों  से  मुझे  जितना  पानी  घर  पहुँचाना  चाहिए  था  बस  उसका  आधा  ही  पहुंचा  पाया  हूँ , मेरे  अन्दर  ये  बहुत बड़ी  कमी  है , और  इस  वजह  से  आपकी  मेहनत  बर्वाद  होती  रही  है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा. 

किसान  को  घड़े  की  बात  सुनकर  थोडा  दुःख  हुआ  और  वह  बोला , “ कोई  बात  नहीं , मैं  चाहता  हूँ  कि  आज  लौटते  वक़्त  तुम   रास्ते में  पड़ने  वाले  सुन्दर  फूलों  को  देखो .

घड़े  ने  वैसा  ही  किया , वह  रास्ते  भर  सुन्दर  फूलों  को  देखता  आया , ऐसा करने से  उसकी  उदासी  कुछ  दूर  हुई  पर  घर  पहुँचते पहुँचते   फिर  उसके  अन्दर  से  आधा  पानी  गिर  चुका  था, वो  मायूस  हो  गया  और   किसान  से  क्षमा  मांगने  लगा . 

किसान  बोला ,” शायद  तुमने  ध्यान  नहीं  दिया  पूरे  रास्ते  में  जितने   भी  फूल  थे  वो  बस  तुम्हारी  तरफ  ही  थे , सही  घड़े  की  तरफ  एक  भी  फूल  नहीं  था . ऐसा  इसलिए  क्योंकि  मैं  हमेशा  से  तुम्हारे  अन्दर  की  कमी को   जानता  था , और  मैंने  उसका  लाभ  उठाया . मैंने  तुम्हारे  तरफ  वाले  रास्ते  पर   रंग -बिरंगे  फूलों के  बीज  बो  दिए  थे  , तुम  रोज़  थोडा-थोडा  कर  के  उन्हें  सींचते  रहे  और  पूरे  रास्ते  को  इतना  खूबसूरत  बना  दिया . आज तुम्हारी  वजह  से  ही  मैं  इन  फूलों  को  भगवान  को  अर्पित  कर  पाता  हूँ  और   अपना  घर  सुन्दर  बना  पाता  हूँ . तुम्ही  सोचो  अगर  तुम  जैसे  हो  वैसे  नहीं  होते  तो  भला  क्या  मैं  ये  सब  कुछ  कर  पाता ?”